Poetry : ओए बनारस, एक मुलाकात ही काफी है

ओए बनारसएक मुलाकात ही काफी है!

उन बीते हुए "यादों/पलों" की खुशी में जीने के लिए,

और एक नई उम्मीद देने के लिए,

एक मुलाकात ही काफी है!!


ए #हिंदी सुनो!!

जिसको भुलाया नहीं जा सकता, वैसी खूबसूरत यादें हैं, ओए बनारस।

भगवान से मांगी गई मेरी "वो खूबसूरत यादें और वो अनचाहे पल में फिर दोबारा जीने का मौका " ही मेरी आखरी फरियाद है, ओए बनारस। 

तुम को ढूंढना, रोजाना उन सुकून के पल में  खो जाना, तुमसे ना मिल पाना, रोजाना पूछना तुम कब मिलोगी और उन यादों में ही रह जाना, मेरी आदत सी हो गई है , ओए बनारस।


इतना सुनते ही,

#हिंदी व्यंग्य में कहते हुए कहती है,

तुम इस गली आते तो कभी नहीं हो, बस तुम उन गलियों की यादों में ही जीवन व्यतीत कर रहे हो। तुम्हारे लिए बस एक मुलाकात ही काफी है ना!!

फिर क्यों पूछते हो, तुम मिलती क्यों नहीं हो।


लेखक #हिंदी के व्यंग्य को सुनने और उनके प्रेम को महसूस करते हुऐ  कहता है,

ए #हिंदी सुनो!

तुम को समझना और समझते समझते तुम मैं खो जाना मेरी आदत सी हो गई है, तुम बनारस की उन गलियों जैसी हो, जिसमें ना जाने क्यों मैं भटक सा जाता हूं। तुम्हारी यादों में फिर खो जाता हूं सोचते सोचते कुछ शब्द तुम्हारे लिए लिख जाता हूं अपने शब्दों से तुमको सुंदर रूप दे जाता हूं। अनजाने में ही मैं अपना बनारस का वो प्रेम, भारत के हर शहर, हर गांव, हर कस्बे, हर गली,  हर मोहल्ले तक सुनाने का प्रयास कर पाता हूं। तुम्हें समझते समझते में खो जाता हूं, बनारस की गलियों का रास्ता भूल जाता हूं। इसलिए मैं  बनारस पहुंच नहीं पाता हूं। 

बस एक मुलाकात के लिए, तुमको ढूंढने रोजाना, अपना कलम लेकर चला आता  हूं!!


~ 𝐏𝐑𝐀𝐃𝐄𝐄𝐏【तथागत

@debugfinder 


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