नीलकण्ठ अर्थात् जिसका गला नीला हो।
दशहरे पर नीलकण्ठ के दर्शन की परंपरा बरसों से जुड़ी है। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की एवं ब्राह्मण हत्या के पाप से खूद को मुक्त कराया। तब भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रुप में धरती पर पधारे थे।
जनश्रुति और धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शंकर ही नीलकण्ठ है। इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि और स्वरूप दोनों माना गया है। नीलकंठ पक्षी भगवान शिव का ही रुप है। भगवान शिव नीलकंठ पक्षी का रूप धारण कर धरती पर विचरण करते हैं।
नीलकंठ पक्षी का श्री राम के जीवन मे महत्व तथा मनुष्य के जीवन मे नीलकंठ के दर्शन का लाभ
भारतीय संस्कृति में इस पक्षी का बहुत महत्व है। विजयदशमी यानि दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन करना बड़ा शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि अगर दशहरे के दिन नीलकंठ दिखे तो उससे यह कहना चाहिए-
नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध भात के भोजन करियो।
हमार बात राम से कहियो, जगत् हिये तो जोर से कहियो।
सोअत हिये तो धीरे से कहियो, नीलकंठ तुम नीले रहियो।
चित्रकूट का वन जब से राम आए हैं, तब से मंगलदायक हो गया है। यहाँ अनेक प्रकार के वृक्ष हैं, जो फूलते तथा फलते हैं और उन पर लिपटी हुई सुंदर बेलों के मंडप तने हैं। वे कल्पवृक्ष के समान ही सुंदर हैं, मानो वे देवताओं को नंदन वन में छोड़कर आए हों। भौंरों की पंक्तियाँ बहुत ही कर्णप्रिय गुंजार करती हैं और सुख प्रदान करनेवाला शीतल, मंद और सुगंध से भरपूर पवन यहाँ चलती रहती है। नीलकंठ, कोयल, तोते, पपीहे, चकवे और चकोर आदि पक्षी कानों को सुख देनेवाली और चित्त को चुरा लेनेवाली तरह-तरह की बोलियाँ बोलते हैं—
नीलकंठ, कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति-भाँति बेलहि बिहग श्रवन सुखद चित चोर॥
करि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगत बैर बिचरहिं सब संगा॥
फिर अहेर राम छबि देखी। होंहि मुदित मृग बृंद विसेषी॥
बाबा तुलसी ने भी रामचरितमानस में राम विवाह के समय कुछ शुभसंकेत बतायें हैं,,,,
बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता॥
चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई॥
भावार्थ:-बारात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बनता। सुंदर शुभदायक शकुन हो रहे हैं। नीलकंठ पक्षी बाईं ओर चारा ले रहा है, मानो सम्पूर्ण मंगलों की सूचना दे रहा हो॥।
दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सबाल आव बर नारी॥
नीलकंठ नीले रहियो, हमरी बात राम से कहियो
दशहरे की पवित्र परंपरा : शुभता के प्रतीक नीलकंठ के दर्शन
नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो’, इस लोकोक्ति के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है। दशहरा पर्व पर इस पक्षी के दर्शन को शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है। जिसके चलते दशहरे के दिन हर व्यक्ति इसी आस में छत पर जाकर आकाश को निहारता है कि उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं। ताकि साल भर उनके यहां शुभ कार्य का सिलसिला चलता रहे।
इस दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है, और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत् होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है।
कहते है श्रीराम ने इस पक्षी के दर्शन के बाद ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। विजय दशमी का पर्व जीत का पर्व है।
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